मिथिला मे एकटा कहबी अछि– ज्यों उपजतो पाट, त दखिह ठाठ...। सोन अर्थात जूट मिथिला क किसान लेल केवल फसल मात्र नहि रहल, अपितु इ एहि ठाम क संस्कृति क हिस्सा सेहो अछि । जूट स संबंध खत्म भेलाहक मतलब भेल एहि ठामक संस्कृति स संबंध टूटब । कहियो ‘’हरियर नोट’’ आओर ‘’गोल्डेन फाइबर’’ क नाम स विख्यात बिहार क जूट आइ अपन अस्तित्व लेल संघर्षरत अछि । सरकार आ समाजक अवहेलना आ उदारवाद स उपजल प्लास्टिक प्रेम एहि ‘’गोल्डेन फाइबर’’ कए ‘’गोल्डेन हिस्ट्री’’ मे बदलि देलक अछि । एकटा समय छल जखन विश्व क कुल उत्पादन क 80 फिसदी जूट क उत्पादन असगर बंगाल करैत छल । बंगाल मे जूट कारोबार जखन शुरु भेल छल तखन बिहार सेहो ओकर हिस्सा छल । बिहार बंगाल स अलग भेल तथापि बिहार मे जूट क रकबा कम नहि भेल । बिहार मे जूट लेल बाजार सेहो प्रयाप्त छल । आजादी क समय विश्व क 80 फिसदी जूट प्रोसेसिंग भारत क कुल 90टा जूट मिल मे होइत छल । मुदा देश क विभाजन जूट कारोबार कए प्रभावित केलक । ओना एखनो देश मे समग्र जूट मिल क संख्या 79 अछि, जाहि मे 62 टा असगर पश्चिम बंगाल मे, सातटा आंध्रप्रदेश मे, बिहार आ उत्तर प्रदेश मे तीन-तीन टा, असम, ओडिशा, त्रिपुरा आ छत्तीसगढ़ मे एक–एक टा जूट मिल अछि। ‘’गोल्डेन फाइबर’’ स ‘’गोल्डेन हिस्ट्री’’ मे बदलि गेल जूट क यात्रा पर बहुत तार्किक ढंग स प्रकाश देबाक कोशिश केलथि अछि पत्रकार सुनील कुमार झा आ कुमुद सिंह । -: समदिया
18वीं शताब्दी मे पटुआ बनल जूट
कहबा लेल जूट क मिथिला मे कईटा नाम अछि, कियो सोन, त कियो एकरा पटुआ कहैत अछि। मुदा ‘जूट’ शब्द संस्कृत क ‘जटा’ वा ‘जूट’ स निकलल बुझाइत अछि । यूरोप मे 18वीं शताब्दी मे सबसे पहिने एहि शब्दक प्रयोग भेटैत अछि, यद्यपि ओहि ठाम एकर आयात 18वीं शताब्दी क पूर्व “पाट” क नाम स होइत रहल छल । 1590 मे अबुल फजल लिखल आइन-ए-अकबरी सन कईटा दस्तावेज कहैत अछि जे जूट क प्रयोग भारत मे कपडा क रूप मे सेहो खूब होइत छल । दस्तावेजक अनुसार भारतीय खास कए मिथिला आ बंगाल मे सफेद जूट स बनल वस्त्र क प्रयोग बहुतायात मे होइत छल । 17वीं शताब्दी मे जखन अंग्रेज भारत आयल, तखन ईस्ट इंडिया कंपनी जूट क पहिल वितरक बनल आ एकर निर्यात पैघ पैमाना पर शुरु भेल । एहि स पहिने भारत मे जूट क उत्पादन केवल घरेलू उपयोग लेल होइत छल । 18वीं शताब्दी क प्रारंभ मे कंपनी स्कॉटलैंड क डूडी मे अपन पहिल कारखाना लगेलक । एकर संगहि भारतीय जूट कए स्कॉटलैंड क डूडी पठेबा लेल कलकत्ता क हुगली तट पर बंदरगाह बनाउल गेल । कच्चा माल आ सस्ता मजदूर दूनू भारत मे उपलब्ध छल, एहन मे मिस्टर जॉर्ज ऑकलैड डूडी नामक स्कॉटलैंड क जूट कारोबारी कए बुझायल जे स्कॉटलैंड मे जूट कारखाना महग धंधा अछि । कंपनी 1855 मे हुगली नदी क तट पर रिशरा मे पहिल जूट मिल खोललक । चारि साल बाद मिस्टर जॉर्ज ऑकलैड क देखा-देखी पॉंचटा आओर नव मिल शुरु भ गेल । 1910 तक एकर संख्या 38 भ गेल । 1880 स पहिने तक पूरा विश्व जूट लेल कलकत्ता आ डुंडी पर निर्भर रहैत छल, मुदा 1880 क बाद जूट फ्रांस, अमेरिका, जमर्नी, बेल्जीयम, इटली, रूस आ आस्ट्रीया तक पहुंच गेल । एहि दौरान भारत क जूट उद्योग सेहो खूब विस्तार पौलक । 1930 में दरभंगा महाराज कामेश्वर सिंह कालकाता क संग संग समस्तीपुर क मुक्तापुर मे सेहो एकटा जूट मिल खोललथि त 1934 मे कोलकाताक तीनटा कारोबारी संयुक्त रूप स कटिहार जूट मिलक स्थापना केलथि । रायबहादुर हरदत राय सेहो 1935 में कटिहार मे जूट कारखाना लगौलथि । कटिहार आ समस्तीपुर मे मुख्य रूप स बोरा निर्माण होइत छल । हाल क दशक मे कटिहार क दूनू मिल बंद भ चुकल अछि, ओना पूर्णिया मे एहि मिल क दूटा इकाई एखनो चालू अछि, जाहि मे स एकटा मे बोरा त दोसर मे कपडा बनेबाक काज भ रहल अछि ।
1930 मे रामेश्वर जूट मिल स राखल गेल आधारशिला
बिहार मे जूट कारखाना क आधारशिला रखनिहार दरभंगा महाराज कामेश्वर सिंह छलाह । 1930 मे कामेश्वर सिंह विन्सम इंटरनेशनल लिमिटेड नामक कंपनी क अंतर्गत कलकत्ता क संग संग समस्तीपुर जिला क मुक्तापुर मे सेहो रामेश्वर जूट मिल क स्थापना केलथि । तकरीबन 69 एक़ड जमीन पर स्थापित एहि औद्योगिक इकाई मे स्थापना काल मे करीब 5 हजार मजदूर आ 150 कर्मी कार्यरत छलाह । 4 सौ करघा क क्षमता वाला एहि मिल मे तीन सत्र मे कर्मी कार्य क निष्पादन करैत छल । ओ काल खंड कोसी अंचल क मजदूर आ किसान लेल स्वर्णकाल कहल जाइत अछि । एहि मिल क मजदूर अपन परिवार क भरण-पोषण क खुशहाली क जिन्दगी जीबैत छल । मिल कए कच्चा माल पूर्णिया, सुपौल, अररिया आ किशनगंज समेत राज्यक अन्य जिला क किसान उपलब्ध करबैत छलाह । आइ स्थिति इ भ चुकल अछि ज करीब सा़ढे नौ दशक पुरान मिल मे कार्यरत मजदूर क संख्या जतए ढाई हजार तक पहुंच गेल अछि ओतहि कर्मीक संख्या महज सवा सौ क आस-पास अछि ।
कहियो मांग पूरा करब छल मुश्किल, आइ पडल अछि माल
रामेश्वर जूट मिल क इतिहास कहैत अछि जे अपन सर्वाधिक उत्पादन क बावजूद एकटा समय छल जखन इ बाजार क मांग पूरा नहि करि पाबि सकल छल, वर्तमान मे मिल प्रबंधन लेल तैयार जूट क बोरा एकटा समस्या बनल अछि । मिल सूत्र क मानि त फिलहाल जूट मिल मे करीब 12 स 13 करोड़ टकाक तैयार बोरा गोदाम मे प़डल अछि । बाजार मे मांग नहि रहबाक कारण एकर बाजार नहि अछि । मिल क एकटा पुरान कर्मी रामवतार सिंह कहैत छथि जे एहन स्थिति रातोराति नहि भेल अछि । दरअसल 80 दशक मे सरकारी स्तर पर विदेशी कंपनी सब कए लाभ पहुंचेबाक नीति जूट मिल कए संकट कए बढा देलक । आइ सरकारी स्तर पर सेहो विदेशी कंपनीक प्लास्टिक बोरा क ध़डल्ले स प्रयोग भ रहल अछि । जखनकि जूट क बोरा गोदाम मे पडल अछि । देखल जाये त पिछला 30 साल मे जुट क विकल्प दिस बाजार तेजी स बढैत गेल आ धीरे-धीरे भारतीय बाजार जूट स अपना कए दूर करैत रहल । आइ बेशक रामेश्वर जूट मिल मे निर्मित बोरा क मांग नहि कए बराबर रहि गेल अछि, मुदा रामेश्वर जूट मिल निर्मित बोरा क मांग पंजाब मे सर्वाधिक होइत छल । एकर अलावा हरियाणा, उत्तराखंड आ उत्तर प्रदेश सन राज्य स सहो भारी मात्रा मे जूट क बोरा क मांग कैल जाइत छल । मिल क प्रशासनिक प्रबंधक आरके सिंह क कहब अछि जे 2012 आ 2014 मे मिल कए भारी आर्थिक क्षति भेल, जखन मिल क गोदाम मे आगि लागल आ करोड स बेसी क संपत्ति खाक भ गेल। पिछला घटना कए छोडि दी तखनो 19 अप्रैल, 2014 मे भेल दुर्घटना मे मिल कए करीब 7 स 8 करोड़ टकाक नुकसान भेल । कहियो बिहार क पटुआ स किसान आ मजदूर कए सोन क भाव देनिहार रामेश्वर जूट मिल आइ अपन अस्तित्व रक्षा लेल संघर्ष क रहल अछि । दू साल क अवधि मे दूटा पैघ आपदा क सामना क चुकल कारखाना अपन पुरान तेबर मे पुन: तैयार हेबाक हर संभव प्रयास क रहल अछि । मुदा प्राकृतिक आपदा क संग संग सरकारी बेरुखी एकर विकास मे वाधक बनल अछि ।
जूट नगरी छल कटिहार
बिहार मे तीनटा मे स दूटा जूट मिल असगर कटिहार मे अछि । एहि कारण स कहियो कटिहार कए जूट नगरी कहल जाइत छल । समस्तीपुर में 1930 में स्थापित भेल रामेश्वर जूट मिलक ठीक चारि साल बाद 25 जून, 1934 कए कलकत्ता क तीनटा कारोबारी क्रमश: बिनोद कुमार चमरिया, रामलाल जयपुरिया आओर विजय कुमार चमरिया संयुक्त रूप स कटिहार जूट मिल लि. क स्थापना केलथि । एकर कारपोरेट आइडेंटिफिकेशन नंबर (CIN) –u17125wb1934pl007999 आ पंजीयन संख्या 007999 छल । एहि कंपनी क कार्यालय 178, दोसर तल्ला, महात्मा गांधी रोड, कोलकाता-07, प. बंगाल दर्ज अछि । 71.07 एकड मे अवस्थित एहि कारखाना कए 30 मैट्रिक टन उत्पादन क्षमता छल । एहि ठाम करीब 5 हजार लोक कए रोजगार भेटल छल । एहि कारखाना कए खुजलाक एक साल बाद 1935 मे राय बहादुर हरदत राय सेहो कटिहार मे एकटा जूट मिलक स्थापना कलथि । जे आइ राष्ट्रीय जूट विनिर्माण लिमिटेड क उपक्रम अछि । प्रतिदिन 17 मैट्रिक टन उत्पादन करनिहार एहि मिल मे करीब 1 हजार लोक कए प्रत्यक्ष रोजगार छल, जखन कि करीब 50 हजार किसान एहि मिल स सीधा जुडल छलाह । कहल जाइत अछि जे पाट स ठाठ देखेबाक परंपरा एहि ईलाका क किसान कए एहि दूनू मिल क देन छल । मिल बंद भेल त पाट आ ठाठ दूनू बिला गेल । आइ बेशक कटिहार क परिचय धूमिल भ गेल अछि, मुदा कटिहार मिल क उत्पाद क पहचान समस्त भारत मे छल । बोरा क संग संग एहि ठाम बनल जूट क अन्य उत्पाद क मांग देश स विदश तक मे छल । पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड आ उत्तर प्रदेश सन राज्य स सहो भारी मात्रा मे जूट क सामान मांग कैल जाइत छल । संगहि नेपाल एकर एकटा पैघ बाजार छल ।
जिनगी क आस मे मरि गेल कारखाना
ओना त 1947 क विभाजन एहि कारोबार कए खासा प्रभावित केलक, मुदा बिहार मे सत्तर स बदतर होइत गेल स्थिति । देखल जाय त देश विभाजन क फलस्वरूप जूट उत्पादन क लगभग तीन चौथाई जूट क्षेत्र पूर्वी पाकिस्तान मे चल गेल, जखन कि जूट मिल सब भारत क हुगली नदी क कछैर मे कच्चा माल लेल तरसैत रहल । पाकिस्तान आ भारत मे संबंध लगातार खराब होइत गेल, जाहि स जुट क संबंध कहियो जुडि नहि सकल । बिहार क जूट उद्योग कए कच्चा माल या बाजार क कहियो कमी नहि रहल, मुदा बंगाल मे जूट क संकट बिहार क कारखाना कए सेहो वाम आंदोलनक भेंट चढा देलक । बंगालक वाम आंदोलन आ देश क अराजक राजनीतिक हालात क कारण निजी प्रबंधन कोनो ठोस निर्णय लेबा मे असमर्थ भ गेल । कारखाना क हालत दिन ब दिन बदतर होइत गेल । तथापि न्यूनतम मजदूरी, पेंशन, भविष्यनिधि, स्वास्थ्य सुविधा मे कटौती क वामपंथी नेताक आरोप क बावजूद किसान-मजदूर मिल मे उत्पादन बढेबा लेल सक्रिय छल । अंतत: वामपंथी दलक दबाव मे आबि 1980 मे सरकार एकटा महत्वपूर्ण डेग उठेलक आ राष्ट्रीय जूट विनिर्माण निगम (एनजेएमसी) लिमिटेड क स्थापना केलक । छहटा जूट मिलक राष्ट्रीयकरण क देलक । एहि मे कटिहार क राय बहादुर हरदत राय मिल सेहो शामिल अछि । सन् 1935 मे स्थापित एहि कारखाना क 18-8-1978 कए भारत सरकार द्वारा अधिग्रिहित कैल गेल । 20-12-1980 कए कारखाना क राष्ट्रीयकरण कैल गेल । पिछला 35 साल मे सरकार कंपनी क पुनरुद्धार लेल करोडो टका खर्च केलक । पिछला दशक मे सेहो 1562.98 करोड़ क पैकेज मंजूर केलक आ 6815.06 करोड़ क ऋण बकाया आ ब्याज माफ केलक । एकर बावजूद सबटा छह इकाइ 6 स ल कए 9 साल स चल नहि रहल अछि । पुनर्बहाल पैकेज क तहत कटिहार मिल कए चालू करबाक छल, मुदा संभव नहि भ सकल अछि । उम्मीद छल जे एहि मिल कए चालू भेला स बिहार मे 5 हजार स बेसी लोक कए प्रत्यक्ष रोजगार भेटत । दस्तावेज क अनुसार 2004 स 2010 तक उत्पादन ठप (मिल बन्द) रहल । 2007 मे कर्मचारी क स्वेच्छा सेवा निवृति (भी.आर.एस) आ 2011 मे अधिकारी क स्वेच्छा सेवा निवृति भेल । 2010 मे कारखाना पुनर्जिवित भेल । 14-2-2011 कए कॉन्ट्रेक्टर क बहाली आ उत्पादन प्रारम्भ भेल । मुदा एहि सबहक बादो 6-7 जुलाई, 2013 क मध्य रात्रि कए आरबीएचएम जूट मिल मे तालाबंदी क देल गेल । मिल स जुडल रामसेवक राय क कहब अछि जे पुरान मशीन आ एनजेएमसी क मजदूर विरोधी नीति कारण स्थिति बिगडैत गेल । मील क उत्पादन क्षमता मे भारी गिरावट आयल । जतए प्रतिदिन 16-17 मैट्रिक टन उत्पादन होइत छल ओतहि मुश्किल स 10 मैट्रिक टन भ गेल । दोसर दिस वामपंथी यूनियन क हो हल्ला सेहो बढैत गेल । एहि दबाव क कारण यूनिट हेड डीके सिंह पत्नी क बीमारी क बहाना बनाकए बिना सूचनाक कटिहार स विदा भ गेलाह । चारि दिन बाद मिल क प्रबंधक एसके विश्वास त्यागपत्र द कए चलैत बनलाह । लगभग एक मास तक पूरा मिल श्रम अधिकारी नवीन कुमार सिंह आ एकटा सुरक्षा प्रहरी द्वारा चलैत रहल । अंतत: मशीन क मरम्मति आ रंग-रौगन क बहाना बनाकए 6-7 जुलाई, 2013 क मध्य रात्रि कए आरबीएचएम जूट मिल मे तालाबंदी क देल गेल । एहिने इतिहास कटिहार जूट मिल क सेहो अछि । कटिहार जूट मिल लि. कए बिहार राज्य वित्तीय निगम 13 सितंबर, 2001 मे चलेबा मे असमर्थ भेला पर गोविंद शारदे क कंपनी सनवायो मैन्यूफैक्चर प्रा. लि. कए सौंप देलक । राज्य वित्तीय निगम क अधिनियम 1951 क तहत अंडर सेक्सन 29 व 30 क तहत सनवायो मैन्यूफैक्चर प्रा. लि. कए कटिहार जूट मिल लि. क 77.07 एकड जमीन बेच देलक । कंपनी क प्रबंधनक श्याम सुंदर बेगानी क कहब अछि जे कंपनी मांग कम रहबाक कारण घाटा में चलि रहल छल, जाहि कारण 20 मार्च, 2013 कए गोविंद शारदे अपन कटिहार जूट मिल बंद करबाक नोटिस लगा देलथि । दोसर दिस कंपनी क गोदाम मे भीषण अगलगी भेल जाहि मे हजार क्विटल क करीब जूट राख भ गेल । एहि स पूर्व सेहो एहि ठाम किछु छोट-मोट अगलगी भेल छल । कुल मिला कए मिल लेनिहार अपन पूंजी बीमा आ अन्य स्रोत स निकालबाक प्रयास मात्र केलथि, मिल चलेबा मे हुनकर प्रयास कम बुझायल । एकर परिणाम इ भेल जे जतए कंपनी क गेट पर ताला लागल अछि ओतहि कंपनीक जमीन पर कब्जा क मामला थाना तक पहुंच चुकल अछि । कारखाना स बेसी कारखाना क जमीन पर आइ बहस भ रहल अछि ।
पाट क पटरी पर विदा भेल किसान
जे पटरी कहियो पाट पठेबा लेल बिछाउल गेल छल, ओ पटरी ध पाट उपजेनिहार किसान आ पाट स बोरा तैयार करनिहार मजदूर आन देस पलायन करबा लेल मजबूर भ चुकल अछि । जूट उपजनिहार हजार क संख्या मे किसान आ कामगार प्रति वर्ष रोजगार क तलाश मे पलायन करैत छथि। सरकारी स्तर पर जूट उपजनिहार कए कोन प्रकार क सहयोग देल जा रहल अछि एकर अंदाजा महज जूट क न्यूनतम समर्थन मूल्य देखि कए पता चलि सकैत अछि । कहियो ‘’हरियर नोट’’ आओर ‘’गोल्डेन फाइबर’’ क नाम स विख्यात जूट 1984 मे 1400 टका प्रति क्विंटल छल, जखनकि 2014 मे यानि 30 साल बाद सरकार एकर न्यूनतम समर्थन मूल्य महज 1150 टका प्रति क्विंटल तय केलक अछि । पिछला 30 साल मे न्यूनतम समर्थन मूल्य क एहन अवमूल्यन आन कोनो नकदी फसल मे संभवत: नहि भेटत । जूट लगेनिहार किसान क दर्द एहि स बुझि सकैत छी । उल्लेखनीय अछि जे भारतीय जूट निगम कपड़ा मंत्रालय क तहत एकटा सार्वजनिक उपक्रम अछि आ इ किसान लेल कच्चा जूट क समर्थन मूल्य कए लागू करेबाक काज करैत अछि । इ स्थिति तखन अछि जखन किसान क हित मे सब साल कच्चा जूट आ मेस्टा लेल न्यूनतम समर्थन मूल्य तय कैल जाइत अछि । विभिन्न श्रेणी क मूल्य कए तय करबा काल निम्न श्रेणी क जूट कए हत्सोसाहित कैल जाइत अछि आ उच्च श्रेणी क जूट कए प्रोत्साहन देल जाइत अछि, ताकि किसान उच्च श्रेणी क जूट क उत्पादन लेल प्रेरित होइथि ।
राष्ट्रीय जूट नीति-2005
एहन नहि जे सरकारी अधिकारी लग जूट पर कहबा लेल किछु नहि अछि । सरकारी दस्तावेज देख कतिपय एहन नहि बुझना जायत जे किसान क दर्द सरकार नहि बुझि पाबि रहल अछि या सरकार कए एकर भान नहि अछि । सरकारी पदाधिकारी अपन स्तर पर बहुत किछु नीति तैयार केलथि अछि मुदा बिचौलिया आ भ्रष्टाचारी क जद मे आबि इ योजना सब धरातल पर पहुंचबा स पहिने दम तोडि दैत अछि । बदलैत वैश्विक परिदृश्य मे प्राकृतिक रेशा क विकास, भारत मे जूट उद्योग क कमी आ खूबी , विश्व बाजार मे विविध आ नूतन जूट उत्पाद क बढ़ैत मांग कए ध्यान मे राखि कए सरकार अपन लक्ष्य आ उद्देश्य कए पुनर्परिभाषित करबा आ जूट उद्योग कए गति प्रदान करबा लेल राष्ट्रीय जूट नीति-2005 क घोषणा केलक ।
एहि नीति क मुख्य उद्देश्य सार्वजनिक आ निजी भागीदारी स जूट क खेती मे अनुसंधान आ विकास गतिविधि मे तेजी आनब छल ताकि जूट किसान नीक प्रजाति क जूट क उत्पादन करथि आ हुनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन बढ़ए संगहि आकर्षक दाम भेटए । मुदा बिहार मे इ नीति कागज स बाहर एखन धरि देखबा लेल नहि भेटल अछि ।
किछु एहने हाल जूट प्रौद्योगिकी मिशनक सेहो अछि । सरकार जूट उद्योग क सर्वांगीण विकास आ जूट क्षेत्र क वृद्धि लेल ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना क दौरान पांच साल लेल जूट प्रौद्योगिकी मिशन शुरु केलक । 355.5 करोड़ क एहि मिशन मे सेहो कृषि अनुसंधान आ बीज विकास, कृषि प्रविधि, फसल कटाई आ ओकर बाद क तकनीकी, कच्चा जूट क प्राथमिक आ द्वितीयक प्रस्संकरण आ विविध उत्पाद विकास आ विपणन -वितरण स संबंधित चारिटा उपमिशन अछि । एहि उपमिशन कए कपड़ा आ कृषि मंत्रालय मिलकए लागू केलक, मुदा बिहार क किसान लेल इ एकटा सरकारी सपना स बेसी किछु नहि । एहिना जेपीएम अधिनियम बिहार मे कतए लागू भेल पता नहि । जूट पैकेजिंग पदार्थ (पैकेजिंग जिंस मे अनिवार्य इस्तेमाल) अधिनियम, 1987 (जेपीएम अधिनियम) नौ मई, 1987 कए प्रभाव मे आयल । एहि अधिनियम क तहत कच्चा जूट क उत्पादन , जूट पैकेजिंग पदार्थ आ एकर उत्पादन मे लागल लोक क हित मे किछु खास जिंस क आपूर्ति आ वितरण मे जूट पैकेजिंग अनिवार्य बना देल गेल अछि । एसएसी क सिफारिश क आधार पर सरकार जेपीएम,1987 क अतंर्गत जूट वर्ष 2010-11 लेल अनिवार्य पैकेजिंग क नियम कए तय केलक, एकर बाद अनाज आ चीनी लेल अनिवार्य पैकेजिंग क शर्त तय कैल गेल । तदनुसार , जेपीएम अधिनियम क अंतर्गत सरकारी गजट क तहत आदेश जारी कैल गेल जे 30 जून, 2011 तक वैध रहल । ओकर बाद सरकार एहि दिस देखबाक समय नहि निकाली सकल । बिहार मे प्रौद्योगिकी उन्नयन कोष योजना सेहो असफल रहल । एहि योजना क उद्देश्य प्रौद्योगिकी उन्नयन क माध्यम स कपड़ा / जूट उद्योग कए प्रतिस्पर्धी बनेबाक छल आ ओकर प्रतिस्पर्धात्मकता मे सुधार अनबाक संग संग ओकरा संपोषणीयता प्रदान करब छल । जूट उद्योग क आधुनिकीकरण लेल सरकार 1999 स एखन धरि 722.29 करोड़ क निवेश केलक अछि । पॉलिथिन पर प्रतिबंध क बाद उम्मीद छल जे जूट क दिन घुरत मुदा उदारीकरण क एहि दौर मे नियम कए ताक पर राखि सरकारी स्तर पर जूट क खरीद नहि होइत अछि । एहन मे जूट श्रमिक क कार्यस्थिति मे सुधार क कोनो सरकारी दावा झूठ क अलावा किछु नहि बुझाइत अछि । कहबा लेल सरकार जूट उद्योग क श्रमिक कए लाभ लेल एक अप्रैल, 2010 कए गैर योजना कोष क तहत कपड़ा मंत्रालय क अनुमोदन स नव योजना शुरु केलक । जूट क्षेत्र क श्रमिक लेल कल्याण योजना जूट मिल आ विविध जूट उत्पाद क उत्पादन मे लागल छोट इकाइ मे कार्यरत श्रमिक क संपूर्ण कल्याण आ लाभ लेल अछि । एकर अंतर्गत राजीव गांधी शिल्पी स्वास्थ्य बीमा योजना क तर्ज पर एहि क्षेत्र क श्रमिक कए बीमा सुविधा प्रदान कैल जेबाक छल । कहबा लेल राष्ट्रीय जूट बोर्ड एकरा लागू केलक । मुदा लाभ केकरा भेटल एकर सूची आइधरि नहि बनि सकल । कुल मिला कए निवेशक अभाव, सरकारक उपेक्षा आ अलाभकारी फसल भ चुलि जूट क किसान आब एहि फसल स मुंह मोडि रहल छथि । आब त इ बस किसान क जिद आ देसी उपयोगिता क बल पर हमर सबहक बीच ‘’गोल्डेन फाइबर’’ बुझू ‘’गोल्डेन हिस्ट्री’’जेकां अछि।
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Bahut nik Report
Bahut sarwardhak.Jute , Sugar or Tobacco Industry Sabhak halat kharab rahla se Mithila k kahawat ulta BH gel je Uttam Kheti Madhyam Ban Naukri chakri bhikh nidan.
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